Rajesh Singh

Rajesh is a Researcher, he recently completed his M.phil with specilization on ‘Voting Behaviour’ along with an internship from Ashoka University after his Masters in Political science from University of Delhi. His academic interests are in Dalit & Women studies as well as Electoral Politics. He has been working as an Electoral and Voter Analyst for last two years. Favourite places to hang out are coffee and book shops.

सोनम वांगचुक की ‘दिल्ली चलो पदयात्रा’ के महत्वपूर्ण पहलू

लद्दाख की मांगों को लेकर पर्यावरणविद सोनम वांगचुक लेह से दिल्ली तक पैदल यात्रा पर निकले हैं। लेह के पहाड़ों से राजधानी नई दिल्ली तक लगभग 1000 किमी की दूरी तय करते हुए, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता ने 75 से अधिक लद्दाख निवासियों के साथ 2 अक्टूबर, 2024 तक दिल्ली पहुंचने का संकल्प लिया है। लाहौल में ‘द वॉम्ब’ के साथ एक साक्षात्कार में जब श्री वांगचुक से रास्ते में आने वाली कठिनाइयों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उत्तर दिया ‘यह सब मन पर निर्भर करता है’ अर्थात दुर्गम रास्ते की कठिनाई उनके मनोबल को कमज़ोर नहीं कर सकती । “दिल्ली चलो पदयात्रा” के 15वें दिन पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक जब पैदल चल रहे थे तो उनके नीले रेनकोट पर मूसलाधार बारिश होने लगी। पारंपरिक हिमाचली टोपी और सफेद दुपट्टा पहने हुए, वह मार्च के दौरान आने वाली कठिनाइयां जैसे बारिश, बर्फबारी, कड़ी सर्दी भी उनके इरादों को कमज़ोर कर पाने में असफल है।

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नई संसद : परंतु क्या महिलाओं के लिए भी कुछ बदलेगा?

बीते रविवार को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विवादों को दरकिनार करते हुए नया संसद भवन देश को समर्पित कर दिया और इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा दिया। नया संसद भवन बनाने के पीछे सबसे बड़ा कारण ये बताया गया है कि वर्ष 2026 में देशभर में सीटों का परिसीमन होना है और निश्चित तौर पर सांसदों की संख्या बढ़ेगी जो लोकसभा और राज्यसभा की कुल मौजूदा संख्या 788 से बढ़ाकर 1200 से ज्यादा होने की संभावना है, परंतु फिलहाल संसद के दोनो सदनों में लगभग 800 के आसपास ही सीटें है। इसलिए समय रहते ही यदि नए सांसदों के बैठने की जगह का प्रबंध न किया जाता तो ये विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देश भारत के लिए विश्व पटल पर अच्छा संदेश नहीं माना जाता। ये हमारे प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि भविष्य की जरूरत को ध्यान में रखते हुए दोनो सदनों में कुल 1272 सीटों के साथ नए भव्य संसद भवन का निर्माण रिकॉर्ड समय में कर दिखाया।

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महिलाओं को क्यों नहीं आने दिया जाता राजनीति में?

अभी हाल ही में गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चनावों के नतीजे आए और दोनों राज्यों की विधानसभाओं में एक बार फिर से महिलाओं को पुरुषप्रधान समाज ने गायब कर दिया।

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आधी आबादी की आजादी कहां छुपा दी?

भारत ने हाल ही में अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर तिरंगा उत्सव और आजादी का अमृत महोत्सव मनाया है पंरतु आजादी के 75 वर्षों के बाद भी भारत की आधी आबादी सुरक्षित नही है। जब तक महिलाएं असुरक्षित हैं तब तक ऐसे कार्यक्रमों या महोत्सवों का कोई महत्व नहीं रह जाता। हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित आंकड़े दर्शा रहे हैं कि उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम भारत के किसी भी राज्य या शहर या क्षेत्र में महिलाएं सुरक्षित नहीं है। वैसे तो अपने आप को भारत विश्व गुरु और दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा शक्तिशाली राष्ट्र मानता है परंतु यहां महिलाओं पर जुल्मों की सूची दिन प्रतिदिन लंबी होती जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2021 में महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार, हिंसा, कत्ल, बलात्कार आदि घटनाओं की संख्या में पिछले साल के मुकाबले 15.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस वर्ष 428278 केस दर्ज हुए हैं जबकि वर्ष 2020 में ये संख्या 371503 थी।

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मीडिया संस्थानों में लैंगिक असमानता

विश्व में महिला पत्रकारिता का अध्याय सर्वप्रथम 1831 में अमेरिका से आरंभ हुआ, जब एनी न्यूपार्ट रॉयल ने “प्राल पाई” नामक पत्र प्रकाशित करना शुरू किया I इसके बाद इन्होंने ‘हंटर’ के नाम से एक और पत्र निकाला। इसी प्रकार भारत में मोक्षदायिनी देवी ने वर्ष 1848 में “बांग्ला महिला” नामक पत्र प्रकाशित करना शुरू किया, जो किसी भारतीय महिला द्वारा प्रकाशित होने वाला प्रथम पत्र था। 1857 में चेनम्मा तुमरी ने बेलगांव से कन्नड़ भाषा में “शालामठ” पत्रिका निकाली, इसी दौर में उर्दू भाषा में आसिफ जहां ने “हैदराबाद गजट” और हिंदी में श्रोमिया पूर्णा देवी ने “अबला हितकारक” प्रकाशित किया। इनके अलावा आजादी से पूर्व भारत में उषा मेहता, शांता कुमारी, उर्मिला, मीरा दत्त, फातिमा बेगम, सायरा बेगम आदि महिलाओं ने पत्रकारिता के क्षेत्र में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और अपना लोहा मनवाया।

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सोलोगैमी, बिंदु और वाइब्रेंट गुजरात

विश्व में गुजरात राज्य एक बार फिर चर्चा में बना हुआ है I हालांकि गुजरात और गुजराती हमेशा से अपने अविश्वसनीय कार्यों और महापुरुषों के व्यक्तित्व के कारण चर्चा में बना रहा है, परंतु इस बार चर्चा का कारण ‘बिंदु’ की ऐतिहासिक शादी है। 9 जून 2022 भारतीय इसिहास में अहम हो गया जब गुजरात की बिंदु नाम की लड़की ने भारत में शादी को लेकर सारी मौजूदा परम्पराओं और अवधारणाओं को तोड़ कर खुद से शादी कर ली।

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दहेज प्रथा आज भी चुनौती

भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर “आजादी का अमृत महोत्सव” मना रहा है, परंतु 21वीं सदी के आजाद भारत में लड़कियां और उनके माता पिता आज भी दहेज जैसी कुप्रथा से जूझ रहे हैं।

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क्यों बदलते हैं महिलाओं के गौत्र (सरनेम)

मशहूर लेखक शिव कुमार बटालवी ने महिला शक्ति के लिए कहा है : नारी आपे नारायण है, हर मथे ते तीजी अख है, जो कुज किसे महान है रचिया, उस विच नारी दा हथ है। अर्थात हर महान पुरुष या स्त्री की सफलता के पीछे किसी ना किसी महिला का हाथ है।

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अम्बेडकर के लक्ष्यों में महिला उत्थान सर्वोपरि

विश्व में ज्ञान के स्तम्भ माने जाने वाले भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीम राव अंबेडकर को केवल दलितों के उद्धारक बता कर सर्वसमाज और महिलाओं को उनके जीवनपर्यंत दिए गए योगदान को सीमित किया जाता रहा है। परन्तु यदि हम उनके लिखे लेखों, भाषणों और जीवन में किए गए महान कार्यों और आंदोलनों को देखें तो पाएंगे कि बाबा साहब ने प्रत्येक भारतीय के उत्थान के लिए कार्य किया है और सबसे खास देश की आधी आबादी (महिलाओं) के उत्थान के लिए अनेकों महान कार्य और त्याग किए हैं।

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बेटियों के नाम पर अपना प्रचार

2014 में केंद्र में बनी नवी नवेली भाजपा सरकार ने बेटियों की भ्रूण हत्या रोकने और उनकी अच्छी शिक्षा के लिए जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत शहर से “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” योजना का शुभारम्भ किया । सरकार की इस योजना का मुख्य लक्ष्य लिंगानुपात और लड़कियों की शिक्षा में सुधार करना रखा गया। और इसके लिए बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को इस योजना को ब्रांड एंबेसडर लगाया गया।

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