gender disparity

नई संसद : परंतु क्या महिलाओं के लिए भी कुछ बदलेगा?

बीते रविवार को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विवादों को दरकिनार करते हुए नया संसद भवन देश को समर्पित कर दिया और इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा दिया। नया संसद भवन बनाने के पीछे सबसे बड़ा कारण ये बताया गया है कि वर्ष 2026 में देशभर में सीटों का परिसीमन होना है और निश्चित तौर पर सांसदों की संख्या बढ़ेगी जो लोकसभा और राज्यसभा की कुल मौजूदा संख्या 788 से बढ़ाकर 1200 से ज्यादा होने की संभावना है, परंतु फिलहाल संसद के दोनो सदनों में लगभग 800 के आसपास ही सीटें है। इसलिए समय रहते ही यदि नए सांसदों के बैठने की जगह का प्रबंध न किया जाता तो ये विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देश भारत के लिए विश्व पटल पर अच्छा संदेश नहीं माना जाता। ये हमारे प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि भविष्य की जरूरत को ध्यान में रखते हुए दोनो सदनों में कुल 1272 सीटों के साथ नए भव्य संसद भवन का निर्माण रिकॉर्ड समय में कर दिखाया।

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मीडिया संस्थानों में लैंगिक असमानता

विश्व में महिला पत्रकारिता का अध्याय सर्वप्रथम 1831 में अमेरिका से आरंभ हुआ, जब एनी न्यूपार्ट रॉयल ने “प्राल पाई” नामक पत्र प्रकाशित करना शुरू किया I इसके बाद इन्होंने ‘हंटर’ के नाम से एक और पत्र निकाला। इसी प्रकार भारत में मोक्षदायिनी देवी ने वर्ष 1848 में “बांग्ला महिला” नामक पत्र प्रकाशित करना शुरू किया, जो किसी भारतीय महिला द्वारा प्रकाशित होने वाला प्रथम पत्र था। 1857 में चेनम्मा तुमरी ने बेलगांव से कन्नड़ भाषा में “शालामठ” पत्रिका निकाली, इसी दौर में उर्दू भाषा में आसिफ जहां ने “हैदराबाद गजट” और हिंदी में श्रोमिया पूर्णा देवी ने “अबला हितकारक” प्रकाशित किया। इनके अलावा आजादी से पूर्व भारत में उषा मेहता, शांता कुमारी, उर्मिला, मीरा दत्त, फातिमा बेगम, सायरा बेगम आदि महिलाओं ने पत्रकारिता के क्षेत्र में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और अपना लोहा मनवाया।

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